प्रिये अन्तर्वासना के पाठको, कृपया मेरा अभिनन्दन स्वीकार करके मुझे अनुगृहीत कीजिये। आज मैं अपनी एक बचपन की सखी कामना रस्तोगी (जो आजकल अमेरिका में रहती है) के जीवन में घटित एक घटना का विवरण आप सबको बता रही हूँ जो उसके जीवन में लगभग तीन वर्ष पहले घटित हुई थी। yum stories
मैं तो इस घटना से तब से परिचित थी जब वह मेरी सखी के जीवन में घटी थी और उसने तब मेरे साथ साझा करी थी।
लेकिन मेरी सखी की अनुमति नहीं होने के कारण मैं आज तक उसे लिख कर आप सब के मनोरंजन के लिए प्रकाशित नहीं करवा सकी थी।
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एक सप्ताह पहले मेरी सखी ने खुद ही उस घटना का विवरण लिख कर मुझे भेजा था और मुझे उसे सम्पादित करके अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने के लिए कहा था।
मैंने उसके द्वारा भेजी गई रचना में शब्दावली, व्याकरण और लेखन में सुधार करके आप के लिए प्रस्तुत कर रही हूँ और आशा करती हूँ की यह आप सब को अवश्य पसंद आएगी।
मेरी सखी की रचना जो उसकी के शब्दों में लिखी हुई है कुछ इस प्रकार से है: अन्तर्वासना पाठक परिवार के सदस्यों को मेरा प्रणाम।
मेरा नाम कामना है और मुझे कामवासना में बहुत रूचि है तथा मुझे उससे जुड़ी अच्छी रचनाएँ पढ़ने की बहुत कामना भी रहती है।
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मैं पिछले एक वर्ष से अन्तर्वासना में प्रकाशित रचनाएँ पढ़ रही हूँ और उन में से मुझे कुछ रचनाएँ तो सच्ची एवं बहुत ही रोचक लगी लेकिन बहुत सी रचनाएँ तो बिलकुल अविश्वासनीय एवं घिनौनी लगी हैं।
इस प्रसंग पर आगे बात न करते हुए मैं अपने जीवन की अनेक घटनाओं में से घटित एक घटना का विवरण आप सब के साथ साझा करना चाहूँगी।
चार वर्ष पहले मेरी शादी बंगलौर वासी अजय रस्तोगी के साथ हुई थी और मैं अपने पति और विधुर ससुरजी के साथ हंसी-ख़ुशी बंगलौर में ही रहती थी।
मेरे पति एक आई टी इंजिनियर हैं और वह बंगलौर में एक आई टी कंपनी में कार्य करते थे तथा मेरे ससुरजी भी वहीं पर एक बैंक में उच्च अधिकारी लगे हुए थे।
एक वर्ष के बाद मेरे पति को अमरीका की एक कंपनी में नौकरी मिल गई तब वह तो तुरंत वहाँ चले गए और मुझे अमरीका का वीसा मिलने में छह माह लग गए।
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उन्हीं छह माह के शुरुआत में ही जो घटना मेरे साथ घटी मैं उसी का विवरण आप से साझा कर रही हूँ।
पति को अमरीका गए अभी तीन सप्ताह ही हुए थे की एक दिन जब मैं अपने ससुरजी के साथ मार्किट में खरीदारी कर के घर आ रहे थे तब हमारे ऑटो का एक्सीडेंट हो गया और वह पलटी हो गया।
उस एक्सीडेंट में मेरे ससुरजी को तो कुछ खरोंचे ही आई थी लेकिन मुझे बहुत चोटें लगी थी जिसमें मेरे दोनों बाजुओं की हड्डियों में फ्रैक्चर हो गए थे और उन पर आठ सप्ताह के लिए प्लास्टर चढ़ा दिया गया था।
मेरी टांगों और घुटनों पर भी काफी चोंटें आई थी जिस के कारण मेरा उठाना बैठना भी मुश्किल हो गया था और डॉक्टर ने मुझे दो सप्ताह के लिए बिस्तर पर ही लेटे रहने की सलाह दे दी थी।
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मेरी यह हालत देख कर ससुरजी ने मेरी देख-रेख एवं घर के काम के लिए पूरे दिन के लिए एक कामवाली रख दी।
वह कामवाली सुबह छह बजे आती थी और पूरा दिन मेरा और घर का सभी काम करती तथा रात को नौ बजे डिनर खिला कर अपने घर चली जाती थी।
अंगों पर लगी चोट और बाजुओं पर बंधे प्लास्टर के कारण मैं अधिक कपड़े नहीं पहन पाती थी इसलिए मैं दिन-रात सिर्फ गाउन या नाइटी ही पहने रहती थी!
मैं नहा तो सकती नहीं थी इसलिए काम वाली बाई दिन में मेरे पूरे शरीर को गीले तौलिये से पोंछ कर मुझे गाउन या नाइटी पहनाने में मदद कर देती थी।
क्योंकि मुझे बाथरूम में जाकर पेशाब आदि करने में कोई परेशानी नहीं हो इसलिए मैं पैंटी भी नहीं पहनती थी।
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इस तरह दुःख और तकलीफ में एक सप्ताह ही बीता था की मेरे ऊपर एक और मुसीबत ने आक्रमण कर दिया।
उस रात को लगभग ग्यारह बजे जब मैं सो रही थी तब मुझे मेरी जाँघों के बीच में गीलापन महसूस हुआ और मेरी नींद खुल गई।
मेरी परेशानी और भी अधिक बढ़ गई क्योंकि मेरे दोनों बाजुओं में प्लास्टर लगे होने के कारण मैं अपने हाथों से वह गीलापन क्यों और कैसा है इसका पता भी नहीं लगा पा रही थी।
वह गीलापन नीचे की ओर बह कर मेरी नाइटी और बिस्तर को भी गीला करने लगा था जिस के कारण मुझे कुछ अधिक असुविधा होने लगी थी।
दो घंटे तक उस गीलेपन पर लेटे रहने के बाद जब मेरे सयम का बाँध टूट गया तब मैंने ससुरजी को आवाज़ लगा कर बुलाया और उन्हें अपनी समस्या बताई।
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