दोस्तो, वरिन्दर सिंह.. लुधियाना से आप सबके लिए एक नई कहानी लेकर आया हूँ। यह कहानी बिल्कुल काल्पनिक है। मेरा नाम वीरू है, मैं पंजाब में रहता हूँ। यह बात करीब 25 साल पहले की है.. मैं कॉलेज में पढ़ता था और छुट्टियों में दिल्ली अपने ननिहाल गया हुआ था। mami
मेरे ननिहाल में मेरे नानाजी.. मामाजी और मामी थे। दो मामा और थे, पर वो अपने अलग-अलग घरों में रहते थे। मैं करीब 19 साल का था.. नई-नई जवानी चढ़ी थी। मेरे ननिहाल में सब मेरे आने पर बहुत खुश हुए। मामाजी की शादी को दो साल हुए थे। उनको एक बेटा एक साल का था।
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वे किसी फैक्ट्री में अच्छी जॉब करते थे। दो-तीन दिन तो ऐसे ही ठीक-ठाक निकल गए। एक दिन दोपहर को खाना खा कर मैं मामाजी के कमरे में बैठा टीवी देख रहा था, उनका बेटा मेरे पास ही सो रहा था… तभी अपने काम-धाम निपटा कर मामी ज़ी भी आ गईं और मेरे पास बिस्तर पर बैठ कर टीवी देखने लगीं।
उन्होंने गर्मी की वजह से नाईटी ही पहन रखी थी। नाईटी के नीचे उन्होंने ब्रा और सलवार पहनी हुई थी। उनके आने से मैं थोड़ा सीधा हो कर बैठ गया। तो वो बोलीं- अरे.. आराम से लेट जाओ.. उठ क्यों गए? ‘कोई बात नहीं मामी जी.. मैं ठीक हूँ..’ मैं बोला।
‘तुम ना.. मुझे मामीज़ी मत कहा करो.. पिंकी कहा करो..’ वो मुझसे मुस्कुरा कर बोलीं। ‘अरे नहीं.. मामीज़ी हो तो मामीज़ी ही कहूँगा..’ मैं थोड़ा सकपकाया। ‘तो क्या हुआ.. अपनी उम्र में कोई ज़्यादा फ़र्क़ थोड़े ही है.. मैं तुमसे सिर्फ़ 4 साल ही तो बड़ी हूँ।’ मैं कुछ नहीं बोला, बस मुस्कुरा दिया।
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‘आज गर्मी बहुत है.. यह कूलर भी ठंडी हवा नहीं दे रहा..’ वो बोली। ‘हाँ.. ऐसी गर्मी में तो एसी होना चाहिए..’ मैंने कहा। ‘आज ही कहती हूँ तेरे मामा से.. कि एक एसी लगवा दो.. गर्मी से जान निकल जाती है.. एसी हो तो आराम से खुल्लम-खुल्ला हो कर लेट जाओ।’
‘खुल्लम-खुल्ला.. वो कैसे..?’ मैंने जानबूझ कर पूछा। ‘अरे बस.. बिना कपड़ों के..’ वो शरारत से मुस्कुरा कर बोलीं। ‘और अगर कोई आ जाए तो?’ मैंने मजा लेकर बात आगे बढ़ाई। ‘कौन आएगा.. जो भी आएगा.. घन्टी बजा कर आएगा.. नाईटी पास ही रखी होती है.. झट से पहनो और जा कर देख लो…’
‘हाँ.. ये ठीक है.. पर आज मेरे आने से आप खुल्लम-खुल्ला हो कर नहीं लेट सकतीं..’ मैंने चुटकी ली। ‘हाँ.. ये तो है.. पर तू तो आराम से लेट जा.. ये कुर्ता-पजामा क्यों पहना है.. घर में भी इतने कपड़े पहन कर ही रहता है।’ वो मुस्कुरा कर बोलीं। पर उनकी इस मुस्कुराहट में शरारत थी।
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‘नहीं.. घर में तो बस चड्डी-बनियान में अपने कमरे में रहता हूँ..’ मैंने भी जानबूझ कर झूठ ही कह दिया। ‘तो उतार दे.. आराम से लेट..’ उसने थोड़ी और शरारत से कहा। मेरे मन में आया कि पूछ लूँ कि अगर मैं खुल्लम-खुल्ला हो कर लेटूंगा.. तो क्या वो भी खुल्लम-खुल्ला होंगी, पर इतना कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और चुप ही रहा।
टीवी पर प्रोग्राम चल रहा था.. पर मेरा उसमें कोई मन नहीं लग रहा था। अब मेरा ध्यान सिर्फ़ मामी के गोरे-चिट्टे बदन पर था। उनका गोल चेहरा.. भरा हुआ बदन.. मोटे-मोटे दो मम्मे और उससे भी बड़े दो चूतड़.. उनकी नाईटी का गला गहरा था तो उनका बड़ा सा क्लीवेज भी दिख रहा था, जो बार-बार मेरा ध्यान उधर खींच रहा था।
मामी को पता था कि मैं कहाँ देख रहा हूँ.. पर वो ऐसे शो कर रही थीं जैसे उनकी छातियाँ घूरने से उनको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा हो.. या ये तो आम बात है.. या अब इतने बड़े खरबूज़ों को छुपाऊँ तो कैसे छुपाऊँ। मेरे मन में तूफान उठ रहा था कि आगे बढ़ूँ और मामी के दोनों मम्मे पकड़ कर दबा दूँ.. पर मेरी हिम्मत जवाब दे जाती थी।
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पहले तो मामीज़ी बैठी थीं.. फिर वो भी लेट गईं और टीवी देखने लगीं। वो मुझसे करीब 2-3 फीट की दूरी पर बाईं करवट ले कर लेटी थीं। हम दोनों के बीच में छोटू सो रहा था। करवट के बल लेटने से उनका क्लीवेज उनके कंधे तक बन गया.. करीब 5 इंच का क्लीवेज मेरे हाथ की पहुँच में था.. पर मैं उसे छू नहीं सकता था।
दो बड़े-बड़े मम्मे.. उफ.. क्या क़यामत की दोपहर थी वो… हम दोनों बीच-बीच में बातें भी कर रहे थे और मामी जी को पूरा पता था कि मेरी नज़रें सिर्फ़ उनके मम्मों पर ही टिकी थीं। मैंने मन ही मन सोचा कि यार अगर मामी का दूध पीने को मिल जाए तो मज़े ले ले कर पियूँ और इसके मम्मे दबा-दबा के चूसूँ।
तभी सोते हुए छोटू डर के उठ गया और रोने लगा। मामी ने उसे सीने से लगा लिया और चुप कराने लगीं.. पर वो रोता ही रहा और सीने से लगाने पर मामी के क्लीवेज में मुँह मारने लगा। मेरी किस्मत देखिए.. बिल्कुल मेरे सामने.. मामी ने नाईटी ऊपर उठाई.. ब्रा ऊपर की और अपने बाएं मम्मे से छोटू को दूध पिलाने लगीं.. मगर मुझे ये समझ नहीं आया कि जब एक ही स्तन से दूध पिलाना है तो दोनों बाहर क्यों निकाले।
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अब मेरी नज़र सिर्फ़ मामी के गोरे और गोल स्तन और उसके ऊपर हल्के भूरे निप्पल पर टिकी थी। मामी भी देख रही थीं कि मैं क्या देख रहा हूँ। मेरे मन में बार-बार ये ख्याल आता कि वीरू हिम्मत कर और मामी से पूछ ले ‘मैं भी दूध पीना चाहता हूँ.. पर पूछू कैसे..?’ कभी दिल कर रहा था कि बस पकड़ कर दबा दूँ.. अगर बुरा भी मान गईं तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा एकाध चांटा ही तो मार देंगी.. पर फिर भी.. हिम्मत नहीं हो रही थी।
मामी ने मुझे कई बार देखा.. पर अब मैं भी बेशर्मी से सिर्फ़ उनके स्तन को ही घूर रहा था। ‘ओये.. क्या घूर रहा है?’ मामी बोलीं। ‘कुछ नहीं मामीज़ी..’ मैं थोड़ा डरा। ‘क्या चाहता है?’ जैसे उसने ऑफर दी हो। ‘दूध पीना चाहता हूँ..!’ मैं खुद नहीं समझ पाया कि मेरे मुँह से ये शब्द कैसे निकल गए।
वो मुस्कुराई और मेरे सर के पीछे हाथ रखा और मेरा सर खींच कर अपने स्तन के पास ले गई और मैंने बड़े प्यार से उनका निप्पल अपने होंठों में पकड़ लिया और ज़ोर से चूस लिया। मेरा मुँह उनके दूध से भर गया.. कोई स्वाद नहीं था.. पर 19 साल की उम्र में स्तन चूसने का मेरा ये पहला अवसर था और इसी चीज़ का मैं मज़ा ले रहा था।
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